लखनऊ: इंटरनेट का वह हिस्सा जो सामान्य ब्राउजर से एक्सप्लोर न किया जा सके, डार्क वेब कहलाता है। यही डार्क वेब अब दुनिया के लिए बड़ा खतरा बन कर उभर रहा है। पहले डार्क वेब का इस्तेमाल इंटरनेट पर मौजूद डाटा को बेचने के लिए प्लेटफॉर्म के रूप में किया जाता था। लेकिन अब यह सिर्फ डाटा के खरीद फरोख्त का केंद्र नहीं रहा बल्कि डार्क वेब के जरिए मानव तस्करी, ड्रग्स सप्लाई जैसे कई अवैध काम किए जा रहे हैं। डार्क वेब पर होने वाली अवैध गतिविधियों के बारे में जानकारी हासिल करना काफी कठिन है। सरकार इसपर सख्त नियम और कानूनों से लगाम लगाने का प्रयास कर रही है।
UPSIFS में सेमिनार का दूसरा दिन
डार्क वेब के संबंध में यह बातें साइबर विशेषज्ञों ने लखनऊ के उत्तर प्रदेश स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेंसिक साइंस (UPSIFS) में साइबर क्राइम पर तीन दिन के सेमिनार के दौरान कहीं। साइबर विशेषज्ञों के मुताबिक भारत का नया डिजिटल डेटा संरक्षण कानून डार्क वेब पर हो रही अवैध गतिविधियों को कम करने का काम करेगा। साथ ही साइबर अपराधियों पर लगाम लगाने में मदद करेगा। साइबर एक्सपर्ट विष्णु नारायण शर्मा ने बताया कि आधुनिक टेक्नोलॉजी की मदद से छिपकर काम कर रहे अपराधियों तक पहुंचना संभव हो गया है।
सेमिनार के दूसरे दिन डीआईजी साइबर अपराध पवन कुमार ने चौंकाने वाला खुलासा करते हुये बताया कि आज के समय में लगभग 90 प्रतिशत साइबर क्राइम क्रिप्टोकरेंसी पर आधारित हो चुका है। यहां बिटकॉइन और एथेरियम जैसी क्रिप्टोकरेंसी का ज्यादा इस्तेमाल होता है। डार्क वेब पर होने वाले ज़्यादातर ट्रांजैक्शन क्रिप्टो में ही होते हैं। इनको पकड़ना काफी मुश्किल होता है। क्यों कि यह ब्लॉक चैन पर आधारित तकनीक है। डीआईजी कुमार ने बताया कि आने वाले समय में इन अपराधों को रोकने में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI बड़ी भूमिका निभाएगा।
कैसे रखें डाटा सुरक्षित
साइबर विशेषज्ञों के मुताबिक अपराधी लोगों की निजी जानकारी चुराकर डार्क वेब पर बेचते हैं। इससे बचने का एक ही तरीका है कि लोग अपने डेटा को सुरक्षित रखें। क्रिप्टो वॉलेट में क्रिप्टो करेंसी रखने से पहले एक्सचेंज की विश्वसनीयता की भी जानकारी कर ले। अपने वॉलेट में मल्टी-फैक्टर ऑथेंटिकेशन का इस्तेमाल जरूर करें। सरकार व जांच एजेंसियों को डार्क वेब पर सतत नजर रखने की आवश्यकता है। नागरिकों को यह समझाना बेहद जरूरी है कि डार्क वेब और क्रिप्टोकरेंसी का गलत इस्तेमाल आपको मुसीबत में डाल सकता है।
डिजिटल सबूत बने न्याय की सबसे बड़ी ताकत
दिल्ली हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस तलवंत सिंह ने साइबर अपराधों की जांच में डिजिटल सबूतों की अहमियत पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि आज के समय में इलेक्ट्रॉनिक एविडेन्स न्यायिक प्रक्रिया की रीढ़ बन गए हैं। मुंबई हमले के आरोपी कसाब को भी डिजिटल सबूतों के आधार पर सजा दी जा सकी थी। उन्होंने प्रदेश सरकार की तारीफ करते हुये कहा कि प्रदेश में न्यायिक ढांचे को तकनीकी रूप से मजबूत करने की दिशा में काम किया जा रहा है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग जैसी सुविधाओं ने अदालतों की कार्यवाही को तेज और पारदर्शी बनाया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी न्यायिक प्रणाली को और सशक्त बनाने के लिए नए सुधार लागू कर रहे हैं।
जस्टिस तलवंत सिंह ने कहा कि जैसे-जैसे डिजिटल सबूतों को कानूनी मान्यता मिल रही है, वैसे-वैसे बढ़ते साइबर अपराधों से निपटना अब पहले की तुलना में आसान होता जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि तकनीक, कानून और AI के संयोग से भविष्य में साइबर अपराध पर लगाम लगाना आसान होगा।